काश ! कुछ इस तरह ये दीपावली मनाऊं की ,
छूट फुलझडियों से मुस्कुराते हर और बिखर जाऊं
बस पकड़ के उस रोकेट की पूंछ, पहुँच घर अपने
माँ के पांवों छू पाऊं
और धमक पटाखो सा अपनी राधा को डराकर, हांथो
पे उसके एक प्यारा सा तोहफा थमाऊं
फिर बैठकर साथ दोस्तों के , ताश की हर बाजी
पे हारकर भी मुस्कुराऊ,
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या फिर तनहा जल अँधेरे को मिटाते उस दिए सा बन
उदास बैठे किसी बच्चे को खिलखिलाऊ ...........