Saturday, November 12, 2011

शुभ दीपवाली !


काश ! कुछ इस तरह ये दीपावली मनाऊं की ,
छूट फुलझडियों से मुस्कुराते हर और बिखर जाऊं
बस पकड़ के उस रोकेट की पूंछ, पहुँच घर अपने
माँ के पांवों  छू पाऊं
और  धमक पटाखो सा  अपनी राधा को डराकरहांथो
पे उसके एक प्यारा सा तोहफा थमाऊं
फिर बैठकर साथ दोस्तों के , ताश की हर बाजी
पे हारकर भी मुस्कुराऊ,
....................
या  फिर तनहा जल अँधेरे को मिटाते  उस दिए सा बन
 उदास बैठे किसी बच्चे को खिलखिलाऊ ...........

Thursday, July 21, 2011

शराफत

खौफ की  इस जहां में कब किसने खिलाफत की
दब गया वो यहाँ, अमन की जिसने हिमायत की 
मेरे ज्यादति के किस्से गलियों में मशहूर थे,
पर पहला तमाचा तब लगा जब हमने शराफत की.

कूबत और ताकत से मन लिया क्या नहीं?
जो यहाँ सादिक हुए, उन्होंने सहा क्या नही?
हाथ में तलवार था तो सामने झुकते रहे सर 
आज पत्थर ले खड़े हैं जब हमने मोहब्बत की.

या खुदा शोहबत में तेरी मोमिन और जुदाई से बनू काफ़िर
फिर इस बात का दुनियां को इल्म क्यों नहीं?
हर जुर्म पे नाम मेरा मोमिनों में रौशन हुआ
आज काफ़िर कह दिया जो इंसानियत की इबादत की

झूठ से प् लिया दौलत भी शौहरत भी
हर चीज अपनी हुई जिसकी हमने चाहत की
फरेब से मयस्सर थी हर नेमत जहां की
दो रोटी को मोहताज हैं, आज जब मशक्कत की.





Saturday, July 2, 2011

"सॉरी"

शाम को जब वह घर लौटा तो दरवाजा खोलते ही पत्नी का मूड बिगड़ता नजर आया, ऑफिस के चक चक ने उसका भी सर अपने गिरफ्त में ले रखा था. पंखे का स्विच दबाया तो पता चला की बत्ती गायब है, पड़ी मैगज़ीन से ही चेहरे पे हवा करने लगा. “मेघा. चाय दोगी.” अंदर से आवाज आई ‘हाँ, बना रही हूँ.’ चाय लेकर आई तो कहा ‘ सामान की जो लिस्ट दी थी वो लाए नहीं , फिर बाजार जाना है क्या?’ ‘नहीं, क्या कोई जरुरी चीज थी? देख  लो, कल ले आऊंगा .’ मेघा के चेहरे पर निराशा झलकी जिसने खीझ के लिए रास्ता बनाया. वो बोली ‘सामान तो जरुरी थे ही. अब मुझे ही जाना पड़ेगा, आप तो जानते हैं की कई चीजे सामने के स्टोर पे नहीं मिलती , ऑटो वाले भी नहीं मिलते, रिक्शे वाले चार किलोमीटर जाने में नखरा दिखाते हैं.’ राज ने कुछ जवाब ना देना ही सही समझा और खुद को न्यूज चैनल पे दिखावटी तौर पर तल्लीन कर लिया. पांच मिनट के अंदर मेघा तैयार हुई और जाते हुए बस बोल भर गई आती हूँ. जवाब में राज ने सर भी नहीं हिलाया.
बैठे हुए राज को पता भी ना चला की वह सोफे पे कब ढूलक गया , उसकी नींद फोन के रिंगटोन्स से खुली . एक  दोस्त का फोन था, उसने बताया की 'इवेनिंग मार्केट' में गोली चली है आज मत निकलना. फोन से राज की सांसे तेज हो गईं, गले की थूक अंदर चली गई.  मेघा का ख्याल आया , उसने तुरंत फोन लगाया फोन की घंटी दो बार बज कर बंद हो गई, दुबारा कोशिश की तो स्विच ऑफ का जवाब मिला. सामने पडे शर्ट को पहना और तेजी से बहार निकल दरवाजे को बंद कर सीढियों से निचे भगा, गेट से बहार निकलते ही मेघा ऑटो से उतरती दिखाई दी, मन- मस्तिष्क में शांति आई, वह समझ गया की घटना के पहले ही वो वहाँ से निकल चुकी थी. अब दिमाग पे क्रोध हावी हुवा वह मुडकर वापस लौटा. ,मेघा के जिद्द पे उसकी सहनशक्ति जवाब दे रही थी. 
कमरे में आते ही ऊँची आवाज में पूछा  की जाना क्या इतना जरुरी था , उसे जिद्दी, अड़ियल और पता नहीं क्या क्या कह गया. मेघा को राज की बातों पे अजरज और क्रोध दोनों हो रहा था. वह समझ नही पा रही थी की इस गुस्से की वजह क्या है, नही राज ने बाजार की घटना का जिक्र किया, सो उसने भी खिल्ली वाले स्वर में बोला "बाहर  जा रहे थे न जाइये , मुझे कई काम हैं ." इसके बाद तो राज का गुस्सा घर टूटे मधुमख्खी सा हो गया, उसने कहा " मैडम बाजार घुमे और यहाँ हम परेशां हो मरे, पता है......" उसकी बात भी पूरी नही हुई की मेघा ने कहा "आने में थोड़ी देर हुई पर मैं कोई बच्ची नहीं हूँ." " हाँ तुम तो जवान  हो इसलिए तो घूमना फिरना जरुरी है." यह बोलता हुवा राज गुस्से निकल गया. मेघा को यह बात अंदर तक चुभी एक अजीब सी टीस उठी, खड़ी आँखे झुक गई, पलकों ने उन्हें संभाल लिया, पर आंसू के बूंद उस दरवाजे को भी भेद बाहर निकल गए. खुली आँखों से सीधी देखती किसी और दुनिया में गम हो गई, शादी के सवा साल हो चुके थे पर ऐसा कभी नहीं हुआ था, इतनी कड़वी बात कभी नहीं बोली गई, क्या दूसरे लोगो की तरह राज भी ऐसा ही है. वह आधे घंटे तक बेसुध ही रही.
रात  को जब राज वापस आया तो उसमें गुस्सा तो नहीं था पर उसे नाटकीय ढंग से रोक चिडचिडा दिखने की कोशिश कर रहा था.  मेघा ने थोड़ी देर बाद खाने को कहा और टेबल पे खाना लगाया इतने में उनके पड़ोसी का लड़का आया और मेघा को सेल फोन की बैटरी दी और कहा " आंटी अब आपका फोन खुद स्विच ऑफ नही होगा,  हाँ पहले इसे चार्ज कर लेना" फिर राज की और मुखातिब होकर बोला "पता है ! आज इवेनिंग मार्केट में  गोली चली भगदड़ मच गई थी' राज ने जब उसकी बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया तो वह  निकल लिया. पर उसके आने ने दोनों की दिमाग के बादलों को छांट दिया. जरुरत थी तो बात शुरू करने की , पर खाने का दौर चुपचाप चला. रात राज बिस्तर पे इन्तेजार करता रहा पर मेघा किचन में समय बिता रही थी , राज ने मान लिया की वो अभी तक नाराज है और उसके सोने के बाद ही आएगी, काफी देर इन्तेजार के बाद उसे नींद आ गई.
सूरज की रौशनी ने पर्दों के बीच से रास्ता बनाते हुए जब राज को जगाया तो सामने टूल पे चाय की कप मिली, चाय गर्म ही थी. राज चाय पीकर जब बाहर की और आया तो मेघा नहाकर बाहर आई, उसके सर धोया था, भीगे बाल थे, या  बीते दिन की दूरी  की कशिश;  पर वो आज राज को बहुत सुन्दर लगी. वह ब्रश करने लगा. जब तौलिए से मुह पोछते वो बाहर के रूम में आया तो टेबल पे एक केक रखा था , बगल में एक गिफ्ट का छोटा डब्बा था. राज को सबकुछ समझ आ गया, कल मेघा बाहर केवल केक के सामान के लिए गई थी .  वह आगे कुछ सोच भी पता की मेघा उसके पीछे आ खड़ी हो गई, राज पीछे घुमा तो वो मुस्कुरा कर बोली " हैप्पी बर्थ डे!" राज आगे बढा और  मेघा में माथे को चूम  लिया फिर हलके से उसके कान में कहा "सॉरी".

Tuesday, June 14, 2011

वन गेट की एक शाम

वन गेट की एक शाम  
वो सो  रहा था
टपकती  बूंदों से बचते
पावों को समेट, फटी
धोती को कम्बल बना
कच्चे सपनो में रो   रहा था,
वो सो रहा था....

सरसराती हवाओं से सुन्न
सिकुड़े  पेट पे हाथ दबाकर
भूख भुलाते , भीगे स्वान को
अधभिगे चबूतरे में आने से
रोकने को टोह रहा था
वो सो रहा था....

चमकती बिजलियाँ, गडगडाहट
बौछारों  की आहट, धीमे से
रूकती तन की सुगबुगाहट
रुग्न क़तर शरीर ,
मृत्यु को मोह रहा था
वो सो रहा था...


Thursday, June 2, 2011

अब छुट्टी है ...

अब  छुट्टी है, चलो कुछ 
वक़्त चैन  का  कुछ  बिताये जाये
ललाट समतल कर, बाग़ के बूढ़े दरख्त 
पे सर अपना टिकाया जाये
अब  छुट्टी है .....

किलकते थे संग बहनों के जिस आँगन में हम भाई
एक दिन ही सही उस सूनेपन को मिटाया जाये
सजते थे ख्वाब लेटे-लेटे फर्श पे, उन कमरों 
पर फैले  जंगलो को हटाया जाये
अब  छुट्टी है.......

बीते हैं कई सावन, जिनकी झुकी पलकों को देख
गुजरकर उनकी गली से, प्यारी उन यादों पे
 मुस्कुराया जाये
अब  छुट्टी है चलो........