वन गेट की एक शामवो सो रहा था
टपकती बूंदों से बचते
पावों को समेट, फटी
धोती को कम्बल बना
कच्चे सपनो में रो रहा था,
वो सो रहा था....सरसराती हवाओं से सुन्न
सिकुड़े पेट पे हाथ दबाकर
भूख भुलाते , भीगे स्वान को
अधभिगे चबूतरे में आने से
रोकने को टोह रहा था
वो सो रहा था....
चमकती बिजलियाँ, गडगडाहट
बौछारों की आहट, धीमे से
रूकती तन की सुगबुगाहट
रुग्न क़तर शरीर ,
मृत्यु को मोह रहा था
वो सो रहा था...
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