अब छुट्टी है, चलो कुछ
वक़्त चैन का कुछ बिताये जाये
ललाट समतल कर, बाग़ के बूढ़े दरख्त
पे सर अपना टिकाया जाये
अब छुट्टी है .....
किलकते थे संग बहनों के जिस आँगन में हम भाई
एक दिन ही सही उस सूनेपन को मिटाया जाये
सजते थे ख्वाब लेटे-लेटे फर्श पे, उन कमरों
पर फैले जंगलो को हटाया जाये
अब छुट्टी है.......
बीते हैं कई सावन, जिनकी झुकी पलकों को देख
गुजरकर उनकी गली से, प्यारी उन यादों पे
मुस्कुराया जाये
अब छुट्टी है चलो........
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