Tuesday, June 14, 2011

वन गेट की एक शाम

वन गेट की एक शाम  
वो सो  रहा था
टपकती  बूंदों से बचते
पावों को समेट, फटी
धोती को कम्बल बना
कच्चे सपनो में रो   रहा था,
वो सो रहा था....

सरसराती हवाओं से सुन्न
सिकुड़े  पेट पे हाथ दबाकर
भूख भुलाते , भीगे स्वान को
अधभिगे चबूतरे में आने से
रोकने को टोह रहा था
वो सो रहा था....

चमकती बिजलियाँ, गडगडाहट
बौछारों  की आहट, धीमे से
रूकती तन की सुगबुगाहट
रुग्न क़तर शरीर ,
मृत्यु को मोह रहा था
वो सो रहा था...


Thursday, June 2, 2011

अब छुट्टी है ...

अब  छुट्टी है, चलो कुछ 
वक़्त चैन  का  कुछ  बिताये जाये
ललाट समतल कर, बाग़ के बूढ़े दरख्त 
पे सर अपना टिकाया जाये
अब  छुट्टी है .....

किलकते थे संग बहनों के जिस आँगन में हम भाई
एक दिन ही सही उस सूनेपन को मिटाया जाये
सजते थे ख्वाब लेटे-लेटे फर्श पे, उन कमरों 
पर फैले  जंगलो को हटाया जाये
अब  छुट्टी है.......

बीते हैं कई सावन, जिनकी झुकी पलकों को देख
गुजरकर उनकी गली से, प्यारी उन यादों पे
 मुस्कुराया जाये
अब  छुट्टी है चलो........