Thursday, July 21, 2011

शराफत

खौफ की  इस जहां में कब किसने खिलाफत की
दब गया वो यहाँ, अमन की जिसने हिमायत की 
मेरे ज्यादति के किस्से गलियों में मशहूर थे,
पर पहला तमाचा तब लगा जब हमने शराफत की.

कूबत और ताकत से मन लिया क्या नहीं?
जो यहाँ सादिक हुए, उन्होंने सहा क्या नही?
हाथ में तलवार था तो सामने झुकते रहे सर 
आज पत्थर ले खड़े हैं जब हमने मोहब्बत की.

या खुदा शोहबत में तेरी मोमिन और जुदाई से बनू काफ़िर
फिर इस बात का दुनियां को इल्म क्यों नहीं?
हर जुर्म पे नाम मेरा मोमिनों में रौशन हुआ
आज काफ़िर कह दिया जो इंसानियत की इबादत की

झूठ से प् लिया दौलत भी शौहरत भी
हर चीज अपनी हुई जिसकी हमने चाहत की
फरेब से मयस्सर थी हर नेमत जहां की
दो रोटी को मोहताज हैं, आज जब मशक्कत की.





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